बिहार के करीब 20 जिलों में फैले एक्यूट इंसेफेलाइटिस (चमकी बुखार) से पीड़ित बच्चों की जान पर खतरा अब भी मंडरा रहा है. वजह ये है कि इस बीमारी (Chamki Fever Effect) से छुटकारा मिलने के बाद अब इन बच्चों के दिव्यांग होने की संभावनाएं जताई जा रही है.
चिकित्सकों का कहना है कि जिन-जिन बच्चों को चमकी बुखार (Chamki Fever Effect) ने अपना शिकार बनाया था उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो गई है. अंदरूनी रूप से कमजोर होने की वजह से अब इनके दिव्यांग होने का पूरा खतरा बना हुआ है.

इन बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए माता-पिता की काउंसलिंग करने की जरूरत बताई गई है. चमकी से तो बच गए बच्चे लेकिन अब उनके उपर दिव्यांग होने का खतरा मंडरा रहा है. इसमें सबसे जरूरी है कि अभिभावक अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर पूरी सावधानी बरतें.
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार और जांच टीम का नेतृत्व कर रहे डॉ. ए.के. सिन्हा की तरफ से यह आशंका जताई गई है.
उनका कहना है कि चमकी बुखार (Chamki Fever Effect) से पीड़ित बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए अभिभावकों का जागरूक होना जरूरी है. ये बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो सकते हैं या फिर उनके शरीर का कोई अंग प्रभावित हो सकता है.
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार एइएस या चमकी बुखार से पीड़ित अब तक 800 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से 155 बच्चों की जान जा चुकी है. ज्ञात हो कि मुजफ्फरपुर समेत बिहार के करीब 20 जिलों में गर्मी के शुरू होते ही बच्चों में चमकी बुखार का कहर फैलना शुरू हो गया था. लेकिन अब बरसात के गिरते ही स्थिति नियंत्रित हो गई है.
संक्रामक है यह बुखार – Chamki Fever Effect
चमकी बुखार मस्तिष्क से जुड़ी समस्या है, इसे दिमागी बुखार भी बोला जाता है. हमारे मस्तिष्क की लाखों तंत्रिकाएं व कोशिकाएं होती है. इन्हीं के सहारे शरीर के अंग काम करते हैं. इन कोशिकाओं में सूजन आने पर इसे ही इंसेफेलाइटिस कहा जाता है.
यह बीमारी संक्रामक होती है. जांच में पता चला है कि इस बीमारी (Chamki Fever Effect) के वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही यह खून में प्रवेश कर जाता है. खून में जाते ही इनका प्रजनन शुरू हो जाता है. यहीं से फिर धीरे-धीरे वे अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं. खून के साथ यह वायरस मस्तिष्क तक पहुंचने लगता है.
क्या आप रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में जानते हैं. लेकिन इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है. क्योंकि आपने कई बार लोगों को यह कहते सुना होगा कि मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है. जिसकी वजह से वे हमेशा बीमार पड़ते रहते हैं.
इसके विपरीत जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है वे लोग कम बीमार पड़ते हैं. इसकी वजह है कि हर वक्त हमारे शरीर के आस-पास वायरस और बैक्टीरिया उपस्थित रहते हैं.
हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इन खतरनाक बैक्टीरिया व वायरस से हमारे शरीर की रक्षा करता है. यही कारण है कि आपको अपने रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के उपाय की जानकारी रखना जरूरी है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता हर रोग के खिलाफ लड़ाई करने में कारगर साबित होता है. लेकिन कभी-कभी इसकी क्षमता कम होने की वजह से रोगाणु बैक्टीरिया व वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करने लगते हैं. जिसकी वजह से हमें गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है.
बच्चों में ऐसे करें रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास –
किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमका उसकी रोजाना की जीवनशैली व खान-पान पर निर्भर करती है. ते आइए आपको हर दिन के खानपान के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की जानकारी देते हैं.

1. पौष्टिक गुणों से भरपूर ब्रोकली में विटामिन-ए व विटामिन सी के अलावा ग्लूटाथियोन नामक एंटी तत्व पाया जाता है. यह इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करने वाला सब्जी है, जिसे रोजाना के भोजन में इस्तेमाल किया जा सकता है. शरीर को इससे भरपूर मात्रा में प्रोटीन व कैल्सियम दोनों मिल जाते हैं.
2. विटामिन डी युक्त आहार हम सभी की सेहत के लिए जरूरी है. इसका सेवन करने से रोगों से लड़ने की शक्ति बरकरार रहती है. हड्डियों को मजबूती प्रदान करने व दिन को स्वस्थ रखने के लिए यह बहुत ही लाभदायक है.
3. शरीर में प्रोटीन की कमी होने से अक्सर तरह-तरह की बीमारियां परेशान करती रहती है. प्रोटीन से एंटीबॉडीज बनते हैं प्रोटीन का सबसे अच्छा स्त्रोत दाल, अंडा, सोया, मांस, डेरी उत्पाद व मछली है.
4. शरीर में विटामिन सी एक संरक्षक का कार्य करता है. खट्टे फल जैसे, संतरा, मौसंबी, नींबू व आंवला विटामिन सी से भरपूर होते हैं. यह हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सर्दी, खांसी व इंफेक्शन जैसे खतरों से राहत दिलाता है. इसलिए खट्टे फलों का सेवन करना शरीर के लिए फायदेमंद है.
5. लहसून तो घर-घर में इस्तेमाल होने का खाद्य पदार्थ है. लहसून में एंटी-बैक्टीरिया व एंटी- ऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते हैं. यह शरीर को बैक्टीरिया व रोगाणुओं से लड़ने में मददगार साबित होता है.
चमकी बुखार – Chamki Fever Effect
यह एक तरह का दिमागी बुखार (Chamki Fever) है. इस बुखार का प्रमुख कारण कुपोषित बच्चों द्वारा लीची का सेवन करना है. खासकर ये बच्चे अधपकी लीची का भी सेवन करते हैं. लीची में हाइपोग्लाइसिन ए व मिथाइल साइक्लोप्रोपाइल ग्लाइसिन टॉक्सिन होता है. ये टॉक्सिन अधपकी लीची में अधिक मात्रा में पाई जाती है.
यह टॉक्सिन शरीर में बीटा ऑक्सीडेशन को रोक देते हैं. जिससे हाइपोग्लाइसिन हो जाती है और रक्त में फैटी एसिड्स की मात्रा बढ़ जाती है. बच्चो के शरीर में ग्लूकोज स्टोरेज कम होता है. जिस कारण ग्लुकोज पर्याप्त मात्रा में रक्त द्वारा मस्तिष्क में नहीं पहुंच पाता है. जिससे मस्तिष्क गंभीर रूप से प्रभावित होता है.
आपके बच्चे की सुरक्षा आपके हाथों में है. बच्चे अगर अंदरूनी रूप से मजबूत रहेंगे तो कई सारी बीमारिया ऐसे ही उनके पास नहीं आएगी. खासकर हाल में जो बच्चे चमकी बुखार के शिकार हुए हैं उनके माता-पिता को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने के लिए यहां कुछ उपाय साझा किये गए हैं. यह आपके लिए भी बहुत कारगर साबित होता. तो इन उपायों को जरूर अपनाएं व अपने अनुभव को ‘योदादी’ के साथ साझा भी करें. #ChamkiFever