साधारणतः माना जाता है कि डिप्रेशन और टेंशन सिर्फ घर के बड़े लोगों की परेशानी है और बच्चों को कोई टेंशन नहीं होती. लोगों का मानना है कि बच्चों को किसी तरह की परेशानी नहीं होती और अगर परेशानी नहीं होगी तो उन्हें टेंशन किस बात की होगी. पर हां यह जानना बेहद जरूरी है कि बच्चे भी टेंशन व डिप्रेशन (Depression in children in hindi) के शिकार होते हैं.
प्रतियोगिता के इस दौड़ में बड़ों के साथ बच्चों को भी दबाव से गुजरना पड़ता है. आज के मॉडर्न युग में लोगों की जीवनशैली में आए परिवर्तन की वजह से बच्चे खुद को अकेला महसूस करते हैं. इसके अलावा बच्चों के कंधों पर बचपन से ही जिम्मेदारियों का बोझ इतना ज्यादा डाल दिया जाता है कि उनका बचपन धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है.
ज्ञात हो कि वॉशिंगटन की यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कान्सिन-मैडिसन के शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों में डिप्रेशन उनकी आने वाली जिंदगी को भी प्रभावित करती है. जिस बच्चे का बचपना टेंशन में गुजरता है, आने वाली जिंदगी में भी वह परेशानियों का सामना करता रहता है. बच्चों में अवसाद चिंता का गंभीर विषय है. इसका असर बच्चों के मानसिक विकास में बाधा स्थापित करता है.
आपको बताते हैं कि बच्चों में डिप्रेशन के कारण व लक्षण क्या हैं:

बच्चों में डिप्रेशन के मुख्य लक्षण:
- बच्चे में चिड़चिड़ापन आना.
- बच्चे का हर वक्त दुःखी दिखना.
- आंख और कान का हर वक्त लाल रहना.
- परिजन व दोस्तों के बीच भी मायूस रहना.
- बेवजह किसी भी छोटी-छोटी बातों पर नाराज होना.
- बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव आना.
- सही वक्त पर खाना नहीं खाना और आनाकानी करना.
- बच्चे का पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी मन न लगना.
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- हर वक्त नकारात्मक बातें करना.
- बच्चे का अकेलापन पसंद करना.
- शिक्षकों द्वारा शिकायतें मिलना.
- बच्चे में बेचैनी का होना.
- बच्चे का अचानक स्कूल में प्रदर्शन खराब होना.
- स्कूल या ट्यूशन जाने से मना करना.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, कोलकाता शाखा के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार नेमानी का कहना है –
”कोई बच्चा तभी एक बेहतर इंसान बनता है जब उसका संपूर्ण विकास होता है. यह विकास बच्चे में सिर्फ किताबी ज्ञान अर्जन करने से नहीं होने वाला. इसके लिए अभिभावकों की तरफ से उन्हें खेलने-कूदने, लोगों से मिलने-जुलने की भी छूट मिलनी चाहिए. पढ़ाई-लिखाई के साथ बच्चों में संस्कार का भी होना आवश्यक है. जब कोई अभिभावक बच्चे के साथ सख्ती से पेश आते हैं. खासकर जब वे उन पर सिर्फ पढ़ाई का ही दबाव बनाते रहते हैं तो इसका बच्चे के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए अभिभावक बच्चे को सिर्फ किताबी कीड़ा नहीं बल्कि उसके संपूर्ण विकास पर बल दें.”
क्या हैं बच्चों में मानसिक अवसाद के मुख्य 6 कारण?

1. तकनीक
आज के इस अत्याधुनिक युग में बच्चे तकनीक पर निर्भर होते जा रहे हैं और वे इसका अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं. यह भी बच्चे में तनाव की एक महत्वपूर्ण वजह है. देखा जाता है कि बच्चे अपने दोस्तों के साथ आपस में ही सोशल साइट्स पर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे रहते हैं.
2. पढ़ाई का दबाव
बच्चे के लिए स्कूल में पढ़ाई का दबाव भी डिप्रेशन का कारण बनता जा रहा है. सिलेबस अधूरा रहने की वजह से भी बच्चा तनाव में चला जाता है. कई बार ऐसा देखा गया है कि मां-बाप द्वारा बच्चे पर अधिक से अधिक नंबर लाने का दबाव भी उसे डिप्रेशन का शिकार बना रहा है.
3. नाकामयाबी का भय
अभिभावक द्वारा बच्चे पर अपने सपने को पूरा करने का दबाव डालना भी बच्चे को डिप्रेशन में डाल देता है. माता-पिता अपने बच्चे से हर प्रतियोगिता में अव्वल आने की उम्मीद रखते हैं और बच्चा अगर प्रतियोगिता में पास नहीं हुआ तो उसका हौसला बढ़ाने की बजाय उस पर जबरदस्ती दबाव डालने लगते हैं, जिससे बच्चा तनाव ग्रस्त हो जाता है.
4. अभिभावक की व्यस्तता
अभिभावक द्वारा बच्चे को कम समय देने से बच्चा स्वयं को अकेला महसूस करता है. लंबे समय तक यह प्रक्रिया जारी रहने से बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है.
5. पर्याप्त सुविधा ना मिलना
बच्चा हमेशा अपने दोस्तों को मिलने वाली सुविधाओं से प्रभावित होता है और बच्चे के मन में यह बात जरूर आती है कि उसका भी दूसरों की तरह हाई लिविंग स्टैंडर्ड क्यों नहीं है? सुविधा पाने की यह इच्छा ही बच्चे को तनाव में डालता है.
6. घर का माहौल
बच्चे के उपर उसके घर के माहौल का बहुत ही ज्यादा प्रभाव पड़ता है. अगर घर का माहौल तनावपूर्ण है तो निश्चित ही बच्चा मानसिक रूप से तनावग्रस्त होगा. अगर बच्चे के साथ कोई शारीरिक या मानसिक शोषण होता है तब भी बच्चा मानसिक अवसाद का शिकार होता है.

तनाव से छुटकारा पाने के लिए कारगर उपाय:
मानसिक अवसाद बच्चे के स्वास्थ्य के साथ-साथ उसकी पढ़ाई-लिखाई को भी प्रभावित करता है. यह मत भूलें कि बच्चे के पहले चिकित्सक, शिक्षक व दोस्त माता-पिता ही हैं. अभिभावक अगर बच्चे के साथ एक बेहतर संपर्क स्थापित करते हुए उसे हर मुश्किल में सहायता करने का यकीन दिलाते हैं तो यह उपाय भी बच्चे को तनाव मुक्त रखने में कारगर सिद्ध होता है. इसके बावजूद भी बच्चा सामान्य नहीं होता है तो समय नष्ट किए बगैर कुशल रोग विशेषज्ञ या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मुलाकात कर इसका समाधान निकालने का प्रयास करें.
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