संविधान ने हर व्यक्ति को समान अधिकार दिया है. मानव अधिकार मतलब ऐसा हक जो हर किसी के जीवन व मान-सम्मान से जुड़ा होता है. यह अधिकार ही हमें गरिमामय जीवन जीना सिखाता है. समस्या तब उत्पन्न होती है जब आपके अधिकारों का उल्लंघन होता है.
इन अधिकारों के बल पर ही हम अपने हक की लड़ाई लड़ते हैं. लेकिन अगर आप अपने अधिकारों के लिए मुखर नहीं हैं. यानी अपने अधिकारों का उल्लंघन होने पर आवाज बुलंद नहीं कर सकते तो इस मामले में गुनहगार से ज्यादा दोषी आप माने जाते हैं. बात भी सही है क्योंकि अगर एक व्यक्ति अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार को दबाता है तो उससे आरोपी को बल मिलता है.

बस इसी वजह से अत्याचार को बढ़ावा मिलता चला जाता है. बच्चों व महिलाओं की बात करें तो घर हो या बाहर उनके साथ होने वाले अत्याचार के कई मामले प्रकाश में आते रहते हैं लेकिन सभी मामले नहीं. वही मामले सामने आते हैं जिन्हें लाया जाता है.
“गुनाह को छिपाने वाला गुनहगार से ज्यादा दोषी है.”
जितने मामले सामने आते हैं उससे कहीं ज्यादा मामले ऐसे हैं जो दब जाते हैं. पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए मानवाधिकार संगठन कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (सीपीडीआर) का अहम योगदान है. इस क्षेत्र में संगठन की तरफ से तमाम तरह की कोशिशें की जाती है.
किसी भी पीड़ित को उनका हक दिलाने की लड़ाई लड़ना कोई आसान काम नहीं है. इस क्षेत्र में विभिन्न तरह की बाधाएं भी आती है जिसका डट कर सामना करना पड़ता है. यह कार्य उन्हीं से संभव होता है जिनके अंदर समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो.
ऐसे ही एक सख्स हैं सीपीडीआर के बड़ाबाजार जिला के अध्यक्ष मनोज सिंह पराशर.

हम आपको मानवाधिकार से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां साझा करने जा रहे हैं:
घरेलू हिंसा (Domestic violence):
घरेलू हिंसा भी अपराध की श्रेणी में आता है. महिलाओं के साथ होने वाले घरेलू हिंसा के मामले आज भी बरकरार है. पहले जब समाज में अशिक्षा थी तब भी वहीं स्थिति थी और आज जब समाज में शिक्षा का विस्तार हो चुका है तब भी परिस्थितियां वही है. उन्होंने बताया कि पिछले 25 वर्षों में करीब 700 घरेलू हिंसा की शिकायतें मिली है. इन शिकायतों में दहेज प्रथा के मामले भी शामिल हैं.

जिसमें से बहुत सारे मामलों का निपटारा किया गया है. वैसे तो घरेलू हिंसा में कई तरह के मामले हैं जसमें मुख्य रूप से दहेज प्रथा के मामले ही अधिक हैं. इस हिंसा की शिकार युवतियों व महिलाओं की उम्र करीब 30-35 वर्ष होती है. घरेलू हिंसा अपराध होने के बावजूद कभी इसे परिवार के डर से तो कभी समाज के डर से दबा दिया जता है.
सोशल मीडिया (Social Media):
एक तरफ देश व समाज की उन्नति में इंटरनेट व सोशल मिडिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. दूसरी तरफ ज्ञान के इस भंडार का समाज पर नकारात्मक प्रभाव भी काफी पड़ता है. खासकर युवतियां इसका गलत रूप से शिकार हो रही हैं. सोशल मीडिया के माध्यम से लड़कियों के प्रताड़ित होने के कई सारे मामले रोजाना सामने आते रहते हैं.
अब बताते हैं कैसे क्योंकि यहां अमूमन मामले ऐसे होते हैं जिसमें युवती सोशल मीडिया पर सामने वाले को जाने बगैर उससे दोस्ती करती है. फिर उसे नौकरी व प्रमोशन समेत और भी कई तरह के झूठे प्रलोभन दिए जाते हैं. लड़कियां भावनाओं में बहकर उनसे गहरी दोस्ती करती हैं और फिर ब्लैकमेल की शिकार होती है.
कोलकाता के सोनागाछी इलाके से भी 10 लड़कियों का उद्धार कर उन्हें परिवार वालों को सौंपा गया है. ऐसी बहुत सारी शिकायतें तो मिलती है लेकिन कई मामलों को लोक-लाज के भय से परिवार वालों की तरफ से दबा दिया जाता है. जिससे आरोपी को बढ़ावा मिलता है.
बच्चों का शोषण (Exploitation of children):
हमारे भारतीय समाज में बच्चों का शोषण शुरू से ही होता आया है और आज भी जारी है. सीपीडीआर के समक्ष बाल शोषण के बहुत सारे मामले दर्ज हुए हैं. जिसमें ज्यादातर मामले ऐसे हैं जिसमें बच्चों से काम करवा कर उन्हें सही मजदूरी नहीं दी जाती.
बिहार से आए ज्यादातर बच्चे इस तरह की घटना के शिकार हैं. वहीं घरों में काम करने वाली बच्चियों के साथ भी गलत किया जाता है. मानव अधिकार से जुड़ी किसी भी शिकायत पर त्वरित कार्यवाई की जाती है लेकिन जो मामले सामने आते ही नही हैं वह चिंता का विषय है.
आवाज बुलंद करना जरूरी (It is necessary to raise voice):
मनोज पराशर ने कहा कि शोषण चाहे किसी भी तरह का हो, उसे दबाना गलत है. कसूरवार आप नहीं वो है जिसने गलती की है. डरने के बजाय अपने खिलाफ हुए शोषण के प्रति मुखर हों.

अगर किसी युवती के साथ कुछ गलत हुआ हो तो मां बेटियों की सबसे अच्छी दोस्त होती है. अपनी मां को ही घटना की जानकारी दें. देश में कानून व्यवस्था है. भले ही कानूनी लड़ाई लंबी होती है लेकिन दोषी को सजा दिलाना जरूरी है.
रोजाना दर्ज होते हैं मामले
संगठन के पास साल के 365 दिनों में रोजाना ही कुछ न कुछ मामले आते रहते हैं. कभी-कभी एक दिन में 4-5 मामले भी आ जाते हैं. सभी मामलों को प्राथमिकता देते हुए समाधान का प्रयास जारी रहता है.
सामाजिक कार्य (social work):
संगठन की तरफ से विभिन्न तरह के सामाजिक कार्य भी किये जाते हैं. जैसे बिहार, झारखंड, ओडिशा समेत अन्य ग्रामीण अंचलों में जरुरतमंद बुजुर्ग व विधवाओं के लिए जरूरत की सामग्री दी जाती है. वहीं जरूरतमंद बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. समय-समय पर रक्तदान कैंप का भी आयोजन किया जाता है.

इनका कहना है कि सामाजिक कार्य का दायरा बहुत बड़ा है और संगठन की तरफ से इसके अलावा मानवाधिकार से जुड़े अन्य कार्यों को भी बखूबी पूरा किया जाता है. समाज सेवा इनके लिए सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है और इसे करने से आत्मिक संतुष्टि मिलती है.
इस साक्षात्कार के माध्यम से हमने आपको अपने अधिकारों के प्रति सजग रखने का प्रयास किया है. आपके साथ भी कभी अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो चुप मत बैठें. बल्कि अधिकारों की रक्षा व दोषी को सजा दिलाने के लिए प्रतिवाद करना सीखें. आवाज बुलंद करें, न्याय जरूर मिलेगा. सजग बनें व दूसरों को भी जागरूक करें. अपनी प्रतिक्रिया ‘योदादी’ के साथ जरूर शेयर करें.#HumanRightsOrganization