सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है जहां भारत से पाकिस्तान को करारी मात मिली थी. यहां भारत के जवान कड़ी ठंड में देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं. सियाचिन में भारतीय सेना (Indian Army in Siachen) पिछले 40 वर्षों से तैनात है. सियाचिन पर बने सेना के बेस कैंप की ऊंचाई 16 से 20 फीट है.

सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन – Indian Army in Siachen
जहां सेना के जवानों की तैनाती होती है. यहां रह रहे जवानों को -50 डिग्री तापमान तक का सामना करना पड़ता है. इन पर्वतीय इलाकों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ही ये जवान चौबीस घंटे माइनस डिग्री तापमान में डटे हुए हैं. यहां अधिकांश जानें हिमस्खलन में जाती हैं.
वहां खाद्य सामग्री भेजने के लिए इतने वर्षों से हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन इसके इस्तेमाल के बाद जो कचरा बच जाता है वो सियाचिन (Indian Army in Siachen) में ही रह जाता है. इतने वर्षों में वहा कचरे का अंबार लग गया था. जिसकी सफाई बहुत जरूरी थी.
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर छिड़ी बहस के बीच भारतीय सेना ने एक अद्भूत कार्य को अंजाम दिया है. सेना के जवानों ने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन से 130 टन से अधिक कचरा साफ किया है. सियाचीन (Indian Army in Siachen) के इको-सिस्टम की सुरक्षा के लिए सेना ने यह कार्य किया है.
स्वच्छता अभियान चलाना मुश्किल – Indian Army in Siachen
इसकी जानकारी सेना के अधिकारियों ने मंगलवार को दी. यहां का तापमान हमेशा माइनस डिग्री में रहने की वजह से यहां स्वच्छता अभियान चलाना बहुत मुश्किल था. हालांकि भारतीय सेना ने अपने हौसले का परिचय देते हुए यह काम कर दिखाया है. जिसकी हर जगह तारीफ हो रही है.
सेना (Indian Army in Siachen) की तरफ से बताया गया कि सियाचिन स्वच्छता अभियान के तहत यह कचरा जनवरी 2018 से लेकर अब तक साफ किया गया है. सियाचिन पर सेना के जवानों की तैनाती की वजह से इसकी चोटी चोटी पर कचरे की मात्रा में वृद्धि होती जा रही थी.
यह कचरा 16,000 से 21,000 फिट की ऊंचाई वाले सेना के पोस्ट और उसके आस-पास के इलाके से हटाया गया है. सेना ने पर्यावरण की रक्षा के लिए लेह और आसपास के क्षेत्रों में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए एक मेगा ड्राइव भी शुरू किया है.
प्रति जवान जमा होता है 15-20 किलो कचरा – Indian Army in Siachen
जितने भी कैंप बेस कैंप के ऊपर हैं, उसके 200 मीटर के दायरे में सामान गिराया जाता है. वहां से सेना के जवान उसे लेकर कैंपों तक पहुंचते हैं. ज्यादातर पैदल आने वाले लिंक पैट्रोल के माध्यम से इन कचरों को लाया गया है. एक जवान अपने साथ कम से कम 10-12 किलो कचरा लेकर आता है. हेलीकॉप्टर के माध्यम से भी कई बार ग्लेशियर से कचरा हटाया गया है.
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स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेड्यूर – Indian Army in Siachen
इंडियन आर्मी ने सियाचिन (Indian Army in Siachen) की चोटी पर तैनात सैनिकों के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेड्यूर (एसओपी) तैयार किया है. इस एसओपी के तहत वहां तैनात सभी जवानों को नीचे लौटते समय वहां रहने के दौरान पैदा पैदा हुए कचरा को भी अपने साथ लाना होता है.
जानकारी के अनुसार वहां से लाए गए कचरे में 41.45 टन धातु अपशिष्ट भी लाया गया है. इन अपशिष्टों में गोलियों के खोखे समेत अन्य चीजें भी शामिल है. जबकि नीचे लाए गए कचरे में 48.14 टन अपशिष्ट पदार्थ ऐसे हैं जो सड़ने-गलने योग्य नहीं है. लेकिन 40 टन अपशिष्ट सड़ने वाले हैं.
कूड़ा निस्तारण को लगी मशीनें – Indian Army in Siachen
सेना की तरफ से कार्टन और कागज के कचरे का निस्तारण करने के लिए एक पेपर बेलर मशीन भी लगाया है. इस मशीन की सहायता से वस्तुओं को दोबारा उपयोग में लाने जैसी बनाई जा सकती है. सेना ने लेह में कार्डबोर्ड रिसाइक्लिंग मशीनों की भी स्थापना की है.
वहीं गैर धात्विक पदार्थों के निस्तारण के लिए लेह में सियाचिन बेस कैंप और बुकांग के पास परतापुर में इनसिनेट्रर मशीनें (कचरे को टुकड़े-टुकड़े करने वाली मशीन) लगाई गई है. धातु के अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए औद्योगिक क्रशर भी उपलब्ध करवाने की कोशिश कर रही है.
सियाचिन ग्लेशियर पर कचरे का अंबार – Indian Army in Siachen
अगर सियाचिन ग्लेशियर को हेलीकॉप्टर के माध्यम से देखें तो पोस्ट के आस-पास दूर-दूर तक तेल के ड्रम, बड़े-बड़े गत्ते के बक्से व पैरा-ड्रॉप किए गए पैराशूट दिखाई पड़ जाएंगे. उसमें से ज्यादातर सामानों का इस्तेमाल होता ही नहीं है. इसकी वजह है कि जिस जगह इन्हें पैरा-ड्राप किया जाता है उसे वहां से बेस कैंप तक ले जाना भी बहुत बड़ी चुनौती है. #IndianArmy
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