पीलिया या ज़ॉन्डिस (Jaundice Causes, Symptoms and Treatment) एक ऐसी बिमारी जिसमें आंखों के सफेद भाग व त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है. जानकर हैरान हो जाएंगे कि जन्म के समय अधिकांश बच्चों में जॉन्डिस बीमारी देखी जाती है. यह नवजात के मांता-पिता के लिए समस्या का कारण बन जाती है. कभी-कभी यह समस्या समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में तो कई बार सही समय पर जन्में बच्चे में भी देखी जाती है. समय से पहले जन्में 80 फीसद बच्चे में जबकि सही समय पर जन्में 60 फीसद बच्चे में जन्म के 2 सप्ताह के अंदर यह बीमारी होती है.

जॉन्डिस नवजात में होने वाली आम बीमारी है. लेकिन जन्म के 2 सप्ताह बाद नवजात का जॉन्डिस अपने आप ठीक हो जाता है. पर ध्यान रहे अगर यह बीमारी अपने आप ठीक नहीं होती है तो फिर समय रहते इसका उपचार करना जरूरी है, नहीं तो फिर परेशानी उत्पन्न हो सकती है. तो आप ऐसी परिस्थिति में अपने फेमिली डॉक्टर से सलाह लेना मत भूलें.
पीलिया रोग सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि व्यस्कों को भी हो सकता है. व्यस्कों में पीलिया होना किसी गंभीर का कारण भी हो सकता है. इसलिए पीलिया के लक्षणों को सही समय पर पहचान कर उसका इलाज शुरू कर देना बहुत आवश्यक है. क्यूंकि बाकी बीमारियों की तरह पीलिया भी अनदेखा करने पर गंभीर रूप धारण कर सकती है. इसलिए समय रहते इसके लक्षणों को पहचान कर इलाज शुरू कर देंगे तो इस बीमारी से आसानी से निजात पाया जा सकता है.
पीलिया रोग क्यों होता है और उससे बचाव के क्या उपाय हैं – Jaundice in Hindi
नवजात में पीलिया – Jaundice in Hindi
मानव शरीर में पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं के बदलने की प्रक्रिया के दौरान पीले रंग का पदार्थ बनता है, जिसे पित्तरंजक (बिलिरूबिन) कहते हैं. बच्चों में लाल रक्त कोशिकाओं की सघनता ज्यादा होती है, जिससे नवजात में पित्तरंजक का प्रमाण बढ़ जाता है. पित्तरंजक का स्तर अधिक होने पर ही नवजात को पीलिया जैसी बीमारी हो जाती है और बच्चे की आंखों के सफेद भाग और त्वचा के रंग पीले पड़ जाते हैं.
नवजात में पीलिया के कारण – Jaundice in Hindi
1. रक्त संक्रमण
2. आंतरिक रक्तस्त्राव
3. मातृ मधुमेह
4. जन्म के वक्त लगी चोट
5. लाल रक्त कोशिका की झिल्ली के दोष
6. लाल रक्त किशोकाओं की संख्या बढ़ने पर
7. हेपेटाइटिस
8. पित्त की अधिकता होने पर
9. थैलेसिमिया की वजह से
10. सिस्टिक फाइब्रोसिस
11. पित्तरंजक निकालने हेतु जरूरी एंजाइम की कमी
12. शारीरिक पीलिया
13. स्तनपान में समस्या जनित पीलिया
14. रक्त समूह की असंगति के कारण
15. समय से पहले जन्म लेने पर
नवजात में पीलिया के लक्षण – Jaundice in Hindi
1. पीलिया होने पर पहले शिशु के चेहरे पर पीलापन दिखना. फिर धीरे-धीरे उसकी छाती, पेट, हाथों व पैरों पर भी पीलापन दिखने लगता है.
2. शिशु की आंखों का सफेद भाग पीला पड़ना.
3. भूख न लगना या कम लगना.
4. बच्चे का सुस्त दिखाई देना.
5. बच्चे का तेज आवाज में रोना.
6. 100 डिग्री से ज्यादा बुखार रहना.
7. उल्टी-दस्त होना.
8. गहरे पीले रंग का मूत्र उत्सर्ग करना.
9. ये सारे लक्षण 14 दिनों तक रहना.
बच्चों में पीलिया का निदान – Jaundice in Hindi
1. डॉक्टर शिशु की हथेलियों और त्वचा पर पीलेपन की जांच करते हैं.
2. शिशु के रक्त की जांच की जाती है. जिसमें बिलिरुबिन का स्तर एवं स्वस्थ्य लाल रक्त कोशिकाओं के स्तर की जांच होती है.
3. यूरिन और मल की जांच कर पता लगाया जाता है कि शिशु के लिवर में संक्रमण तो नहीं है.
घरेलू उपचार – Jaundice in Hindi
1. शिशु को धूप में रखना
डॉक्टर पीलिया पीड़ित शिशु को फोटोथेरेपी यानी धूप में रखने की सलाह देते हैं. यह उपचार बहुत फायदेमंद है. तो ध्यान रहे कभी भी अपनी मर्जी से नहीं बल्कि डॉक्टर की सलाह से ही बच्चे को धूप में रखें.
2. जूस पीलाएं
डॉक्टर के परामर्श से ठोस आहार लेने वाले बच्चे को आप थोड़ा थोड़ा करके गाजर, पालक, वीटग्रास, गन्ने का जूस दे सकते हैं.
3. स्तनपान कराना
पीलिया होने पर शिशु को अधिक से अधिक स्तनपान कराएं. इससे बिलीरूबिन का स्तर कम होता है. इसलिए बच्चे को दिन में कम से कम 8-10 बार स्तनपान कराएं.
4. सप्लीमेंट्स
शिशु के ठीक से स्तनपान नहीं करने पर चिकित्सक की सलाह से उसे मां के दूध का सप्लीमेंट्स दे सकते हैं.
5. बिली ब्लैंकेट
बिली ब्लैंकेट एलईडी वाला ऐसा कंबल जो एक कवर की तरह काम करता है. यह बच्चे को दोनों तरफ से कवर करके पीलिया ठीक होने में मदद करता है.
वयस्कों में पीलिया के कारण – Jaundice in Hindi
1. ज्यादा एल्कोहल का सेवन करने पर.
2. किसी किस्म के असामान्य मेटाबॉलिक डिफेक्ट के कारण.
3. हेपेटाइटिस-ए, बी और सी के इंफेक्शन के कारण.
4. किसी रोग प्रतिरोधक बीमारी के कारण.
5. एसेटामाइनोफिन, पेनेसिलिन और कुछ गर्भनिरोधक दवाओं के गलत इस्तेमाल के कारण.
वयस्कों में पीलिया के लक्षण
1. त्वचा व आंखों के सफेद हिस्से का पीला पड़ना.
2. व्यक्ति के मुंह के अंदर का हिस्सा पीला पड़ना.
3. पेशाब का रंग पीला हो जाना.
4. बिलिरुबीन का स्तर बढ़ जाना.
5. मल का रंग असामान्य हो जाना.
6. भूख कम लगना.
7. हमेशा थकान और कमजोरी महसूस होते रहना.
व्यस्कों में इंफेक्शन के कारण होने वाले पीलिया के लक्षण
1. बुखार
2. पेट में दर्द
3. ठंड लगना
4. सामान्य बुखार वाले लक्षणों का दिखना
5. त्वचा का रंग बदलना
6. पेशाब का रंग पीला और मल का रंग हल्का हो जाना
व्यस्कों के लिए पीलिया का घरेलू उपचार
गन्ने का जूस
गन्ने के जूस में लीवर को मजबूत करने की ताकत होती है. यह लीवर को सही तरीके से काम करने में मदद करता है. पीलिया के मरीजों के लिए रोजाना एक ग्लास गन्ने का जूस स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है.
प्राकृतिक धूप लें
दवा के अलावा कुछ देर प्राकृतिक धूप में बैठना भी पीलिया में रोग में राहत दिलाता है. यह उपाय छोटे बच्चों के लिए भी कारगर साबित होता है.
बकरी का दूध
गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध पचने में आसान होता है. इसलिए पीलिया होने पर बच्चे व बड़े सभी के लिए यह दूध फायदेमंद साबित होता है. बकरी के दूध में मौजूद एंटीबॉडी पीलिया ठीक करने में भी मदद करता है.
अदरक
एंटीऑक्सीडेंट गुण से भरपूर अदरक लीवर के लिए गुणकारी है. अदरक की चाय बनाकर पीने से भी पीलिया में राहत मिलता है.
लहसुन
लहसुन भी एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है. यह लिवर को स्वस्थ्य रखने में मदद करता है और पीलिया के इलाज में भी योगदान करता है.
दही
पीलिया के मरीज के लिए दही का सेवन लाभकारी है. यह प्रोबायोटिक्स प्रतिरक्षा को दुरुस्त बनाए रखने में मदद करता है. दही बिलीरुबिन के स्तर को नीचे लाकर शरीर को हानिकारक बैक्टीरिया से सुरक्षा प्रदान करता है. इसलिए पीलिया के मरीज को रोजाना एक कटोरी दही का सेवन करना चाहिए.
टमाटर
टमाटर में लाइकोपीन पाया जाता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है. टमाटर खाने से लिवर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद मिलता है. पीलिया के रोगी को टमाटर उबालकर और उसका जूस नियमित रूप से पीना चाहिए. इससे बीमारी से उबरने में सहायता मिलती है.
आंवला
आंवला में विटामिन सी समेत अन्य आवश्यक पोषक तत्व भी होते हैं. ये पोषक तत्व पीलिया से निपटने में सहायता करता है. यह लिवर की कार्यप्रणाली को भी मजबूत करता है. आप आंवला उबाल कर इसका पेस्ट तैयार करें. इस पेस्ट को पानी और शहद के साथ मिलाकर रोजाना पीएं.
नवजात में पीलिया के बारे में मिथक
पीलिया को लेकर समाज में कई ऐसे मिथक हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. लेकिन लोग इन मिथकों पर भरोसा भी बहुतच जल्दी कर लेते हैं.
मिथक
पीलिया वाले शिशु की मां को स्तनपान कराना होता है इसलिए मां को पीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए. यहां तक की पीला भोजन भी नहीं करना चाहिए.
सच्चाई
इस बात का अब तक कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि मां के पीले कपड़े पहनने या पीली चीज खाने से बच्चे को पीलिया होता है.
मिथक
नवजात को पीलिया से बचाने के लिए मां को मसालेदार और ज्यादा तेल वाली चीजें नहीं खानी चाहिए.
सच्चाई
मां के तैलीय चीजें खानें पर स्तनपान करने वाले शिशु को पीलिया रोग का कोई खतरा नहीं रहता.
मिथक
बच्चे को घर में ट्यूब के नीचे रखने पर फोटोथैरेपी हो जाती है.
सच्चाई
शिशु को इस तरह ट्यूब के नीचे लिटाने से उसे ठंड लग सकती है, जिससे उसे बुखार भी हो सकता है. जबकि फोटोथैरेपी में ऐसी रोशनी के नीचे शिशु को लिटाया जाता है, जहां से वेवलेंथ निकलती है. यह सुविधा घर में नहीं बल्कि सिर्फ अस्पतालों में ही रहती है.
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