नया साल, नई उम्मीदें लेकर आता है और इस अवसर हम सभी सुख-शांति की कामना करते हैं. भारत में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, फिर भी अगर किसी घर में किलकारी गूंजती है तो ये कम खुशी की बात नहीं होती. हमारे देश में आज भी जन्म (new years babies) को सेलिब्रेट किया जाता है. लेकिन क्या जन्म से ही खुश होकर तसल्ली की जा सकती है?

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार इस दिन पूरे विश्व में जहां 395000 बच्चों ने जन्म लिया उसमें से भारत में जन्में बच्चों की कुल संख्या 69,944 है.
इस मामले में चीन दूसरे व नाइजीरिया तीसरे स्थान पर है. इस दिन जन्मे कुल बच्चों में से आधे से अधिक बच्चों का जन्म 8 देशों में ही हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक जहां चीन में 44,940 व नाइजीरिया में 25,685 बच्चों का जन्म हुआ है. वहीं पाकिस्तान में 15,112, इंडोनेशिया में 13,256, यूएस में 11,086, डीआर कांगो में 10,053, बांग्लादेश में 8428 बच्चों का जन्म हुआ है. जबकि सिडनी में 168, टोक्यो में 310, बिजिंग में 305, मैड्रिड में 166 एवं न्यूयॉक में 317 बच्चों का जन्म हुआ है.
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यूनिसेफ ने इन आंकड़ों का अनुमान भर लगाया था जो कि वास्तविकता में अधिक भी हो सकता है!
आंकड़ों पर गौर करें तो भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि निकट भविष्य में भारत पर सबसे ज्यादा जनसंख्या का भार होगा. अब सवाल उठता है कि क्या जनसंख्या के साथ ही जिम्मेदारियों को पूरा करने में भारत एक देश के रूप में कितना सक्षम है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि भारत में जिस प्रकार जन्म दर अधिक है, उसी प्रकार बच्चों में मृत्यु दर भी अधिक है.
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में इस दिन 1 मिलियन शिशु को मौत हुई थी. जिसमें से 2.5 मिलियन की मृत्यु जन्म के पहले महीने में ही हुई थी. इनमें सबसे अधिक बच्चों की मौत समय से पहले प्रसव, प्रसव के दौरान कई जटिलताओं, सेप्सिस और निमोनिया जैसे संक्रमणों के कारण हुई थी. यूनिसेफ की तरफ से कहा गया है कि हमें इस नए वर्ष पर हर बच्चे के जीवन के अधिकार को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए.
अगर हम प्रशिक्षण में निवेश करके स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों को हेल्थ प्रशिक्षण से लैस कर देते हैं तो इससे हम लाखों शिशुओं की जान बचा सकते हैं. इस वर्ष यूनिसेफ का बाल अधिकार से संबंधित प्रस्ताव को अपनाने का 30वां वर्ष है. इस विशेष अवसर पर यूनिसेफ की तरफ से पूरे साल दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे.
यूनिसेफ का कहना है कि पिछले तीन दशकों में विश्व में बाल सुरक्षा में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है. ऐसे बच्चों की संख्या में कमी आई है जिनकी मृत्यु जन्म के पांचवे वर्ष से पहले ही हो जाती है लेकिन नवजात शिशुओं के मामले में ऐसा नहीं है. नवजात के मामले में प्रगति बहुत धीमी है. पांच महीने से कम उम्र के बच्चों की मौत मामले को देखें तो 47 फीसद मृत्यु पहले महीने में होती है.
यूनिसेफ की तरफ से ‘एवरी चाइल्ड अलाइव कैंपेन’ के तहत हर मां और नवजात शिशु के लिए सस्ती व गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा देने के लिए तत्काल निवेश की जानकारी दी गई है. इसके तहत स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छ जल व बिजली की निरंतर आपूर्ति, गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं को रोकने व उनका इलाज करने के लिए दवा व पर्याप्त इलाज शामिल है.
जन्म से लेकर बच्चों की परवरिश करना माता-पिता की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है. बतौर पैरेंट्स हमें अपनी जिम्मेदारी का बोध होना चाहिए और बच्चे के लालन-पालन से लेकर उसे बेहतर नागरिक बनाने के प्रयास करने चाहिए. इससे आपके अपने परिवार को तो प्रगति मिलेगी ही, साथ ही देश को भी तरक्की की राह मिल जाएगी.

यूनिसेफ ने देशों को चेताया है लेकिन हम इस चुनौती को बेहतरी में बदल सकते हैं!
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