पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा की स्वात घाटी की रहने वाली मासूम सी बच्ची जिसके लिए लड़कियों की शिक्षा से बढ़कर कुछ भी प्यारा नहीं था. साधारण सी दिखने वाली लड़की मलाला युसुफजई (Malala Yousafzai) ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह इतनी खास बन जाएगी.
आत्मविश्वास से भरपूर मलाला की आंखें ही बहुत कुछ कहती है. साहसी मलाला जिसने लड़कियों की शिक्षा को लेकर अपनी आवाज बुलंद की थी. जिसका खामियाजा उसे गोलियां खाकर भुगतना पड़ा.
मात्र 11 वर्ष की उम्र में मलाला ने आतंकियों के साथ लोहा लिया था और उसे गोलियां खानी पड़ी थी. लड़कियों व महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ने वाली मलाला की आज विश्व में पहचान है. मलाला आज दुनिया का सबसे जाना-पहचाना नाम है. मलाला आम दिखने वाली सबसे खास लड़की है.

उसका जज्बा ही उसे सबसे अलग बनाता है. उसकी आंखें दृढ़ निश्चय से भरी है. किसी भी अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना, लड़कियों की शिक्षा के लिए आरोपी के सामने बहादुरी से पेश आना ही उसे बाकी लड़कियों से अलग पहचान देती है. इस पाकिस्तानी लड़की को ही सबसे कम उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था.
पढ़ने में अव्वल थी मलाला – Malala Yousafzai
पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात इलाके में 12 जुलाई 1997 को मलाला का जन्म हुआ था. वहां लड़कियों को स्कूल भेजने को कोई चलन नहीं था. लेकिन मलाला अपने बड़े भाई का हाथ पकड़कर स्कूल जाया करती थी.
मलाला पढ़ाई में बहुत अच्छी थी. इसी दौरान तालिबान ने अफगानिस्तान से आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान की तरफ कदम बढ़ाया था. यहां तालिबानियों ने स्वात के कई इलाकों पर कब्जा करने के बाद स्कूलों को तबाह करना शुरू कर दिया था.
दुनिया में शिक्षा का अधिकार सभी के लिए हो. खासतौर पर तालिबान व चरमपंथियों के बच्चों को तो शिक्षा हर हाल में मिलनी चाहिए. ताकि वे दहशतगर्दी के अंधेरे से बाहर निकल सकें. – मलाला युसुफजई
उन लोगों ने वर्ष 2001 से 2009 के बीच करीब 400 स्कूलों को ढ़हा दिया था. ढ़हाए गए तमाम स्कूलों में से करीब 70 फीसद लड़कियों के स्कूल थे. तालिबान के इस बढ़ते जुल्म की दुनिया में किसी को कोई खबर नहीं थी. उस वक्त तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
जरूर पढ़ेः ऐसे डाल सकते हैं बच्चे के बेहतर करियर की नींव!
तब यह पाकिस्तानी लड़की स्वात घाटी में लड़कियों की शिक्षा पर लगी पाबंदियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करती थी. इस काम के लिए प्रोत्साहन मलाला को उनके पिता जियाउद्दीन यूसुफजई से मिला था क्योंकि स्वात घाटी में लड़कियों की शिक्षा के लिए वे भी पैरवी करते थे.
गुमनाम ब्लॉगर ‘गुल मकई’ के नाम से चलाया आंदोलन

वर्ष 2008 में बीबीसी उर्दू के आमेर अहमद खान और उनकी टीम स्वात घाटी की सच्चाई को दुनिया के सामने लाना चाहती थी. इसके लिए गुमनाम रूप से ब्लॉग लिखावाने के लिए इन लोगों ने मलाला के पिता से संपर्क किया था. मलाला के पिता को इस नेक काम में बहुत रूची थी और उन्होंने इसके लिए अपनी बेटी को ही चुना.
महज 11 साल की छोटी सी उम्र में ही मलाला (Malala Yousafzai) ने ‘गुल मकई’ के नाम से बीबीसी उर्दू के लिए ब्लॉक लिखा करती थी. उस ब्लॉग के माध्यम से मलाला अपने विचारों व स्वात घाटी के हालातों से दुनिया को रू-ब-रू कराती थी. मलाला का पहला ब्लॉग बीबीसी उर्दू ब्लॉग पर 3 जनवरी 2009 को पोस्ट हुआ था.
जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था. इसके बाद मलाला के कई ब्लॉग कई सप्ताह तक पोस्ट किए गए. हालांकि कुछ समय तक यह रहस्य बना रहा कि ‘गुल मकई’ आखिर है कौन. दिसंबर 2009 में इस ‘गुल मकई’ की हकीकत सामने आते ही 11 विर्षय छोटी सी मलाला तालिबान के निशाने पर आ गई थी.
स्वात घाटी की सच्चाई को डॉक्यूमेंट्री में किया था उजागर
साहसी मलाला (Malala Yousafzai)के चर्चे हर जगह होने लगे थे. हर तरफ से उसे सराहना मिलनी शुरू हो गई थी. न्यू योर्क टाइम्स की तरफ से मलाला पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गई थी. पाकिस्तान से मलाला को नेशनल यूथ पीस प्राइज से नवाजे जाने के बाद और भी कई अवार्ड्स के लिए नॉमिनेट किया गया था. बस मलाला के समस्या की शुरुआत यहीं से हो गई.
मलाला की मिल रही यह शोहरत तालिबानियों को बर्दाश्त नहीं हो रहा था. इसके बाद 9 अक्टूबर 2012 को तालिबानियों ने मलाला को स्कूल जाते वक्त बस में घुसकर उसके सिर में गोलियां दागी थी. तब उसकी उम्र मात्र 11 साल थी. बुरी तरह जख्मी मलाला का इलाज ब्रिटेन के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में हुई थी.
लंबे इलाज के बाद मलाला स्वस्थ हुई थी. इस हमले ने मलाला के इरादों को और मजबूत कर दिया. जिंदगी और मौत की जंग जीतने के बाद मलाला पूरी दुनिया में खुले तौर पर बच्चों व लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों के मसीहा के रूप में सामने आई. इसके बाद मलाला ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मिला नोबल शांति पुरस्कार – Malala Yousafzai
पूरी दुनिया में मलाला के कामों व उनके विचारों को देखते हुए इस साहसी लड़की को बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप से 10 अक्टूबर 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मलाला ने सबसे कम उम्र में हासिल किया था. इसके अलावा भी मलाला को दुनिया के कई सारे पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. आज मलाला के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है. उसके किस्से आज हर देश के लिए आदर्श है.
यूएन द्वारा मलाला दिवस की घोषणा – Malala Day
यूनाइटेड नेशंस ने 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया था. मलाला ने यूनाइटेड नेशंस में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया था. अपने संबोधन में मलाला ने उन सभी बच्चों व महिलाओं को समर्पित किया था जिसने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी.
मलाला ने कहा था कि दुनिया में शिक्षा का अधिकार सभी के लिए हो. खासतौर पर तालिबान व चरमपंथियों के बच्चों को तो शिक्षा हर हाल में मिलनी चाहिए. ताकि वे शिक्षा के माध्यम से ही दहशतगर्दी के अंधेरे से निकल कर बाहर आ सकें.
मलाला फंड से लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा
लड़कियों की शिक्षा को लेकर जज्बे से भरपूर यह लड़की मलाला फंड चला रही है. इसका इस्तेमाल दुनिया भर में लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था व इस शिक्षा के खिलाफ उठने वाली आवाज की सहायता के लिए किया जाता है.
मलाला दिवस के माध्यम से हम आपको यह बताना चाहते हैं कि शिक्षा हर किसी के लिए जरूरी है. चाहे वो लड़का हो या लड़की. #MalalaDay