एक नर्स मरीज की सेवा बहुत ही निष्ठा, आत्मीयता और त्याग के साथ करती है. मरीज को नया जीवनदान देने में नर्स की भूमिका अहम होती है. मरीजों की देखभाल करते हुए नर्सों को हर दिन नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अब तो नर्सिंग के क्षेत्र में पुरुषों की भी रूचि बढ़ रही है.

यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में पुरूष नर्सों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. मेल नर्सों की संख्या दक्षिण भारत में सबसे अधिक है. नई तकनीक और शिक्षा के माध्यम से नर्सिंग के करियर को पहले की तुलना में काफी बेहतर बनाने का प्रयास जारी है.
नर्सिंग की शुरुआत किसने की?
फ्लोरेंस नाइटेंगल आधुनिक नर्सिंग की जननी थी. उनकी याद में प्रति वर्ष 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) का पालन किया जाता है. इन्हें ‘लेडी बिथ द लैंप’ भी कहा जाता था. इनके इस नाम के पीछे एक मजेदार कहानी है. ये मरीजों की तो सेवा करती ही थी. प्राइमिया युद्ध के वह लालटेन लेकर घायलों की जी जान लगाकर सेवा की थी. इसी सेवा भावना को देखते हुए उनका नाम लेडी बिथ द लैंप रखा गया था.
प्रशिक्षण स्कूल – International Nurses Day
इनका जन्म ब्रिटिश परिवार में 12 मई 1820 को हुआ था. फ्लोरेंस नाइटेंगल को उनकी सेवा भावना के लिए याद किया जाता है. उनके जन्म दिवस के अवसर पर हर वर्ष नर्स दिवस का पालन किया जाता है. वर्ष 1860 में उन्होंने सेंट थॉमस अस्पताल और नर्सों (International Nurses Day) के लिए नाइटेंगल प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की थी. 13 अगस्त 1910 को लंदन में उनका निधन हुआ था.

नर्सों के उल्लेखनीय सेवा कार्यों को मान्यता देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से 35 नर्सों के लिए 1973 में राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटेंगल पुरस्कार की शुरुआत की थी. इस पुरस्कार के तहत विजेता को नकदी 50 हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और एक पदक दिया जाता है. इस पुरस्कार के तहत वर्ष 2014 तक कुल 306 नर्सों को सम्मानित किया जा चुका है.
नर्सों की कमी की समस्या – International Nurses Day
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के तहत दुनिया के अमीर व गरीब दोनों देशों में नर्सों(International Nurses Day) की कमी है. अब बात यह है कि जो देश विकसित हैं वे अन्य देशों से नर्सों को बुलाकर इस कमी की भरपाई कर लेते हैं. इसके एवज में इन नर्सों को अच्छी वेतन व तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जाती है.
अच्छा वेतन व तमाम सुविधाएं मिलने की वजह से वे विदेशों में जाने में थोड़ी सी भी देरी नहीं करती है. इसके विपरीत विकासशील देशों में सही वेतन व सुविधाओं की कमी के साथ ही सही भविष्य नहीं दिखने की वजह से वे वहां जाने से कतराती हैं.
रोगी और नर्स (International Nurses Day) के अनुपात को देखें तो विश्व के अधिकांश देशों में आज भी प्रशिक्षित नर्सों की कमी है. भारत से विदेशों के लिए नर्सों के पलायन में बहुत कमी आई है. पर आज भी रोगी व नर्स के अनुपात में भारी अंतर है.

समस्या – International Nurses Day
ट्रेंड नर्सेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार अभी भारत में प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में पहले की तुलना में काफी सुधार हुआ है. सरकार की तरफ से उठाए गए कदम का ही यह नतीजा है. पहले स्थिति ऐसी थी कि अच्छे वेतन व सुविधाओं के लिए ज्यादा से ज्यादा नर्सें विदेश का रूख करती थीं.
हालांकि अब स्थिति काफी सुधरी है. मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि होने की वजह से रोगी व नर्स के अनुपात का फासला काफी कम हो गया है. अब सरकार की जिम्मेवारी है कि इस विषय को गंभीरता से देखा जाए. सरकारी अस्पतालों में नर्सों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर वेतन समेत अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं. यही वजह है कि यहां से नर्सों का पलायन काफी कमा है.
नर्सों की स्थिति में सुधार जरूरी – Nursing Career
कई राज्यों व निजी क्षेत्रों में नर्सों (International Nurses Day) की हालत आज भी खराब है. इनसे काम तो अधिक लिया जाता है, पर वेतन बहुत कम दिया जाता. नर्सों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है. केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों व अस्पतालों में नर्सों की कमी की वजह से शादीशुदा महिलाओं को भी नर्सिंग पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनुमति मिली.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश के बड़े शहरों में चिकित्सा व्यवस्था उन्नत होने के कारण यहां नर्सों की संख्या में कमी नहीं है. जबकि गावों में स्थिति बेहद खराब है. जिसे बदलने की आवश्यकता है.

नर्सिंग कोर्स – Nursing Courses
नर्सिंग के लिए कई तरह के पाठ्यक्रम कराए जाते हैं. युवतियों में बीएससी (नर्सिंग) पाठ्यक्रम के प्रति अत्यधिक आकर्षण रहता है. बीएससी (नर्सिंग) पाठ्यक्रम चार वर्ष का होता है. इस कोर्स में प्रवेश पाने के लिए 10+2 परीक्षा अंग्रेजी, जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विषय के साथ 55 फीसद अंकों से उत्तीर्ण होना जरूरी है. नर्सिंग कॉलेजों में विद्यार्थियों को स्कॉलरशीप भी दिया जाता है. नर्सिंग के क्षेत्र में अध्यापन को अपना करियर बनाने के लिए बीएससी (नर्सिंग) के बाद दो वर्षिय पाठ्यक्रम एमएससी (नर्सिंग) कर सकती हैं.
यह कार्य बहुत ही समर्पण वाला है. नर्सों को अपने से ज्यादा मरीजों का ख्याल रखना पड़ता है. यह भी कह सकते हैं कि इनका समाज के प्रति बहुत बड़ा योगदान है. अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर हमने इस सेवा कार्य से जुड़े लोगों की समर्पण भावना को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है. आप भी इस सेवा कार्य से जुड़े लोगों का सम्मान करें. आलेख पढ़ने के बाद अगर आपका कुछ सुझाव हो तो ‘योदादी’ के साथ कमेंट कर जरूर शेयर करें. #InternationalNursesDay
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