पूरे विश्व में लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने का सबसे सशक्त माध्यम ‘सोशल मीडिया’ है. बड़े नेटवर्क का इस्तेमाल करने के प्रति बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी काफी दिलचस्पी है. इसके अधिक व्यवहार का परिणाम यह है कि यह बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रहा है. यह सूचना व संचार का सबसे उत्तम माध्यम है, पर इसका अत्यधिक उपयोग हानिकारक है. ये बड़ों के साथ-साथ बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं.
वैज्ञानिक भी ये मान रहे हैं
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो जिन बच्चों को इंटरनेट की लत लगी हो वे जीवन में संतुष्ट नहीं रहते. उनके मन में अपने जीवन के प्रति हमेशा नकारात्मक भाव व्याप्त रहता है. वहीं लड़कियों के भावुक होने की वजह से लड़कों की तुलना में लड़कियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव अधिक देखा जाता है. सोशल मीडिया का ज्यादा व्यवहार करना बच्चों की याददाश्त पर विपरीत प्रभाव डालता है. इसकी लत से बच्चे की याददाश्त कमजोर हो जाती है. जिससे इनका दिमाग महत्वपूर्ण जानकारियों को सुरक्षित नहीं रख पाता. सोशल मीडिया के अधिक व्यवहार से दिमाग पर जानकारियों का बोझ बढ़ जाता है.

सोशल मीडिया के इस युग में लोग हर वक्त ऑनलाइन रहना ही पसंद करते हैं. ज्यादा से ज्यादा समय तक इंटरनेट पर व्यस्त रहने की वजह से मस्तिष्क को आराम नहीं मिलता. शोधकर्ताओं का परामर्श है कि सोशल मीडिया के आदी लोगों को बीच-बीच में ऑफलाइन भी रहना चाहिए. क्योंकि लगातार इंटरनेट पर व्यस्त रहने की वजह से दिमाग को जानकारियों को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है. इसका सीधा प्रभाव मेमोरी पॉवर पर पड़ता है. इसी तरह दिन-रात सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने वाले बच्चों के लिए भी यह माध्यम खतरों से खाली नहीं है.
सोशल मीडिया का बच्चों पर दुष्प्रभावः
आज के हाइटेक जमाने में छोटे-छोटे बच्चे भी सोशल मीडिया की लत से बुरी तरह ग्रस्त हैं. सुबह से लेकर रात सोने तक वे सोशल मीडिया पर ही लगे रहते हैं. उन्हें किसी बात की कोई सुध नहीं रहती.
पूरे समय इंटरनेट पर व्यस्त रहने के कारण उन्हें अपने आत्मविश्लेषण का वक्त नहीं मिलता.
सोशल मीडिया की व्यस्तता के कारण बच्चे अपने परिवार व समाज से भी कटने लगते हैं.
लोगों से बढ़ती दूरियों के कारण बच्चा मानसिक रूप से तनावग्रस्त रहने लगता है.
छात्र जीवन में समय का बहुत महत्व होता है. हर वक्त सोशल मीडिया पर वक्त बिताने की वजह से उनके कीमती समय की बर्बादी होती है.

इंटरनेट का अधिक व्यवहार करना बच्चे की आंखों को बुरी तरह प्रभावित करता है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि सोशल मीडिया एक नशा है. जो बच्चे इसके आदी हो जाते हैं उनका सोशल मीडिया के बिना जीना मुश्किल हो जाता है. इसके प्रभाव से बच्चे का दिमागी विकास रूक जाता है.
सोशल मीडिया की वजह से बच्चे तनावग्रस्त रहने लगते हैं.

बच्चों के आत्मसम्मान पर भी सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बच्चे दोस्तों द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किये गए फोटो व स्टेटस देखते हैं तो वे अपनी कामयाबी की तुलना साथी के कामयाबी से करने लगते हैं. इसका मानसिक रूप से बुरा प्रभाव पड़ता है. जिससे बच्चे के जीवन में नकारात्मकता की भावना उत्पन्न होते-होते बच्चा सुस्त रहने लगता है.
भारतीय बच्चों में नेट कनेक्टिविटी व स्मार्ट फोन की मांग पूरी नहीं होने पर उनमें हीनता की भावना उत्पन्न होने लगती है. वहीं जरूरतमंद बच्चों के मन में एक अलग किस्म के विचार आते हैं और वे खुद को आधारभूत साधनों से वंचित महसूस करते हैं. क्या आपके बच्चे को भी बीमार बना रहा सोशल मीडिया!
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, कोलकाता शाखा के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार नेमानी कहते हैं –
”बच्चों में बढ़ती सोशल मीडिया की बुरी लत एक तरह की गंभीर बीमारी है. इस लत के लिए काफी हद तक उनके माता-पिता भी जिम्मेवार हैं. व्यस्तता की वजह से वे अपने बच्चे को क्वालिटी टाइम नहीं देते. जबकि अच्छी परवरिश के लिए क्वालिटी टाइम बेहद महत्वपूर्ण है. माता-पिता, भाई-बहन के एक साथ रहने पर ही बच्चे को क्वालिटी टाइम मिल पाता है. व्यस्तता के इस दौड़ में अभिभावक बच्चे को समय नहीं दे पाते. जिसकी वजह से बच्चा खुद को अकेला महसूस करता है. इस अकेलेपन की वजह से ही वे धीरे-धीरे सोशल मीडिया के शिकार हो रहे हैं.”
शोध की मानें तो…
एक शोध के अनुसार सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की वजह से 12 से 15 वर्ष की उम्र के हर तीन में से एक बच्चे की नींद रात को टूट जाती है. रात को उठकर भी वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने लगता है. जसकी वजह से अगले दिन बच्चा स्कूल में थकान महसूस करता है.

सोशल मीडिया देखने पर बच्चों की ये आदत हो जाती है कि वह वहां देखी हुई किसी चीज की मांग अपने अभिभावक से करने लगते हैं. जैसे स्मार्ट फोन ही ले लीजिए। आए दिन बाजार में नए-नए फोन आते रहते हैं. बच्चों की आदत होती है कि सोशल मीडिया पर जहां किसी को नया फोन देखा बस घरवालों से उसकी मांग करने लगे.
महत्वपूर्णः
लगातार हो रहे अध्ययन से पता चला है कि सोशल मीडिया का अधिक उपयोग करने वाले बच्चे ज्यादा दुःखी रहते हैं. ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स द्वारा ‘सोशल मीडिया यूज एंड चिल्ड्रेन्स वेलबीइंग ‘ अध्ययन के दौरान 10 से 15 वर्ष की उम्र के करीब 4000 बच्चों पर सर्वे किया गया था. जसमें बच्चों से उनके जीवन से संबंधित तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई.
एक ऐप के माध्यम से बच्चे सोशल मीडिया का कितना उपयोग करते हैं. जिसमें पता चला कि बच्चे सोशल मीडिया पर जितना समय व्यतीत कर रहे हैं. उसी अनुपात में वे अपने घर-परिवार व जीवन के प्रति असंतुष्ट हैं जबकि सोशल मीडिया पर कम वक्त बिताने वाले बच्चे अपने जीवन में ज्यादा संतुष्ट दिखे. ऐसे बच्चों को अपने घर, परिवार व स्कूल से कोई शिकायत नहीं थी.
सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने वाले बच्चे अपने जीवन से निराश रहते हैं. अगर यहां सही ढ़ंग से सर्वे किया जाए तो नतीजे भयानक मिलेंगे. नेट कनेक्टिविटी बढ़ने और स्मार्टफोन की चाहत बच्चों में हीन भावना पैदा करती है.